हे कपिलवस्तु की पुण्य भूमि तेरी यशगाथा गायें।
बुद्धं शरणम्-संघम् शरणम् की धर्म ध्वजा लहराये।।
हे शाक्य भूमि मेरे वैभव की गूँजे अमृत वाणी।
तेरी गोदी में जन्म लिए सिद्धार्थ महाबलिदानी ।।
करूणा की धारा बही यहीं से शान्ति पताका फहरी ।
मिट गयी रोग की जरा मृत्यु की चिन्ताएं सब गहरी।।
पीड़ित मानवता के उर में फैली जो भ्रान्ति मिटाए।
शोषत जन-मन में फिर आशा की ज्योति जलाए।।
सारे सुख वैभव त्याग तपस्वी बनकर अलख जगाये।
कष्टों को हरने हेतु महात्मा बुद्ध धरा पर आये ।।
नागासाकी और हिरोशिमा फिर ध्वंस न होने पाए।
कोई कलिंग का युद्ध न फिर इस धरती पर मडरायें।।
यह हरी-भरी प्यारी धरती शमशान न बनने पाये।
सद्भावों के जलते दीपों की लौ न बुझने पाये।।
मिट जाये विषमता कटुता सब यह वर्ग भेद की खाई।
अज्ञान मिटे स्वर गूँजे फिर मानव-मानव सब भाई।।
आओ हम सब मिल-जुलकर कुछ ऐसे पौध लगायें।
जे शान्ति अहिंसा सत्य प्रेम के पुष्प सदा बरसायें।।
– लालता प्रसाद चतुर्वेदी